खुद को निहारूँ मंत्रमुग्ध-सी खुद पर ही रीझूं बार-बार जब दर्पण में नज़र आते हो तुम खुद से शर्माऊं शर्... खुद को निहारूँ मंत्रमुग्ध-सी खुद पर ही रीझूं बार-बार जब दर्पण में नज़र आते हो तु...
हम लाल लहू से जाने जाते हैं पर्वत गिरते हम पार लगाते हैं। हम जीने की कोई खबर नहीं र हम लाल लहू से जाने जाते हैं पर्वत गिरते हम पार लगाते हैं। हम जीने की क...
लकीरें हाथ में जो हैं, पुरानी हैं लकीरें हाथ में जो हैं, पुरानी हैं
कुछ अल्फ़ाज़ कह जाते हैं, कुछ अल्फ़ाज़ बह जाते हैं। कुछ अल्फ़ाज़ कह जाते हैं, कुछ अल्फ़ाज़ बह जाते हैं।
और जब हम थक जाते हैं दुहरा -दुहराकर , फिर उसे ही पचासों बार हमसे लिखवाते हैं। और जब हम थक जाते हैं दुहरा -दुहराकर , फिर उसे ही पचासों बार हमसे लिखवाते हैं।
बच्चे देर से घर लौटें तो पहरेदार बन जाते हैं ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जात बच्चे देर से घर लौटें तो पहरेदार बन जाते हैं ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यो...